तमाम उम्र है गुज़री अंधेरी ग़ार के साथ, न अब चराग़ से निस्बत न नूर-ओ-नार के साथ। न जाने कब से मैं तन्हा हूं दर्द-ए-यार के साथ, किसे शरीक करूं अब ग़मे-दयार के साथ। है उसकी नर्म कलामी का ये असर अब भी, कि संग आज भी लिपटे हैं उस मज़ार के साथ। बड़ा अजीब सा दस्तूर है इस दुनिया का, यहां पे झूठ का इकरार भी इंकार के साथ। बसा के हमने चाहतों का नगर छोड़ दिया, कोई भी शख़्स न उतरा खरा मेयार के साथ। यही उसूल है शहरे-वफ़ा के लोगों का, गुलों का ज़िक्र भी होगा अगर तो ख़ार के साथ। किसे ख़बर थी कि इक दिन "अलीम" चाहत में, ख़िज़ां भी आती है दिल में उसी बहार के साथ। #yqaliem #ghaar #chiraagh #narmkalaami #shahre_wafa #dard_e_yaar #khizaan #bahaar ग़ार - cave निस्बत - relation, connection नूर-ओ-नार - light and flame संग - stones मेयार - standard ख़ार - forks