किसे दिल में रखूं, किसे निकाल फेंकू, अब क्या अपने पराए का भी हिसाब रखूं? सुना है ज़िन्दगी हर मोड़ पर कोई सिख नई सिखाती है, मैं गिरता पड़ता आदमी, बताओ क्या क्या इंतजाम रखूं? आते जाते सबने बताया के तुम नासमझ बहुत हो, अब क्या खुद को समझने को भी मैं कोई किताब रखूं? उसने तो अपनी ज़ुबान से हमारा दिल जला दिया है समझो, सोच रहा हूं, के मैं भी अब अपने बोली में थोड़ी तेजाब रखूं। एक कंधे पर हौसलों को जगह तो दे ही दी है, दूसरे कंधे पर क्या फिर, हमेशा इक शमशान रखूं? #shamshaan