सीखती हूँ अनवरत मैं ब्रह्मांड के कण-कण से । देखती हूँ रस्सियों सा बल एक किए हुए तृण तृण से । समझती हूँ लक्ष्य भेदन सूत्र नन्ही चींटी के सतत श्रम से । विचारती हूँ ऊँचाई आसमां की परिंदों की ऊँची उड़ान से । जूझती हूँ दुर्गम परिस्थितियों में सबक ले मरुस्थलीय प्रतान से । सोचती हूँ नाप लूँगी गगन मैं सारे रहस्य जान ज्ञान विज्ञान से ।। ©Seema varnika #सीखती हूँ