बहिनों के त्याग की कीमत पर इनकी पढ़ाई-लिखाई, खाना-कपड़ा सब होता है और पत्नियों के साथ भी संवेदना शून्य व मानवता रहित व्यवहार इनका होता है। अनजान लड़कियां या स्कूल-कॉलेज, कार्यस्थल पर जानेवाली लड़कियाँ तो वैसे भी इधर-उधर घूमते-भटकते जंगली पशुओं से अपने आपको बचाती फिरती है। मुझे याद आ रही है एक बात, जब मैंने कॉलेज में प्रवेश लिया था तब मेरे साथ पढ़ने वाली दो बहनें, जो बहुत मेधावी थी उन्हें कॉलेज में इसलिए प्रवेश नहीं लेने दिया गया था क्योंकि उनका भाई वहाँ पढ़ता था और उसने मना कर दिया था। तब दुःख बहुत हुआ था पर मानसिकता समझ नहीं आई थी।पर धीरे-धीरे समझ आया कि बहिनों के रहते वे कॉलेज में मनमानी और छेड़ खानी कैसे कर सकते थे? ©अंजलि जैन #बेटों को इंसान बनाओ#०३.१०.२० #Stoprape