आज फ़िर खामोशी का मॊसम है, मायूसी कि फ़िज़ा है और उदासी का संगम है, मह्फ़िल मे भी तन्हाइयो कि बरिश है, आंसूओ कि बुन्द से जैसे खिला कोई गुलशन है , चेहरे पे फ़िर वही मुस्कान है, ओर ह्र्दय मे फ़िर वही चुभन हैं , कब से आजाद करना चाहती हूँ मैं, इस दिल में कैद जो इस दिल कि धड़कन है! Astha Dhiren #aajfir