#ग़जल -ए -हकि़कत आके महफिल में भी ना आये हुए से हैं। क्युँ बिन गुनाह के भी वो पछ्ताए हुए से हैं। मिली निगाहें हमारी भी निगाहों से एक बार को , जब से ही वक़्त- ए -महफिल मे आँख चुराये से हैं। जाने कैसे समझुँ जाने कैसे समझाऊँ? जबसे आये है दूरियाँ बनाये से हैं। खैरियत -ए- महफिल ली तो ठीक सा मालूम पड़ता है। लबों पे मुस्कान और आँखो में कुछ छलकाये से हैं जुडे़ दिल से है मगर आज जानते तक नहीं , बेबसी और खा़मोशी मे वो राज़ छुपाये से हैं मालूम नही पड़़ती आज महफिल महफिल सी हमें। एक खामोशी मे वो हजा़र सवाल उठाये से हैं। ना गुरूर ना शाद ना खुशी दिखती है मुझे । निगाहें मेरी हटी तो मुझसे ही निगाहें मिलाये से हैं। आके महफिल मे भी वो ना आये हुए से हैं। क्युँ बिन गुनाह के भी वो पछ्ताए हुए से हैं। ..........haquikat**❤ गज़ल ए हकिकत Darshan Raj Sandeep Rajput Roshani Thakur jagdish dawar Priya keshri (Kaise कहे हमे कितनी मोह्हबत हैं)