क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।। जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।। (read full poem in caption) ©पारूल चौधरी एक हादसा ही तो था, फिर उस पर इतना बवाल क्यों ? जो खामोशी से चला गया, उसकी मौत पर कोई सवाल क्यों ? क्यों फर्क पड़े हमें कि, उसको क्या-क्या खला होगा ? यूँ हवा में झूलने से पहले,