अगर पानी है अपने सपनों की मंजिल तो हर नारी को घर की दहलीज़ पार करनी ही होगी, समाज के बनाए रस्मों रिवाजों के बंधन को तोड़ कर हौसलों के पंँखों से उड़ान भरनी होगी। चार दीवारी के अंदर हया के परदे में बैठकर अपनी काबिलियत को जान नहीं सकती नारी, अपनी काबिलियत बढ़ाने को नारी को दुनियाँ का सामना करने के लिए हिम्मत जुटानी होगी। निभाती है सारी जिम्मेदारियांँ और फर्ज फिर भी जीती है नारी जुल्मों सितम से भरी जिंदगी, जुल्मों सितम से निपटने व बराबरी का दर्जा पाने को हर नारी को खुद आवाज उठानी होगी। 🌟 प्रतिदिन प्रतियोगिता- 03 🌟 शीर्षक - दहलीज़ ! 🌟 इस रचना में आपको सिर्फ़ 6 पंक्तियाँ लिखनी हैं, इससे कम या ज़्यादा पंक्तियों में लिखी हुई रचना प्रतियोगिता में मान्य नहीं होगी। 🌟"COLLAB" करने के बाद "COMMENTS" में "DONE" ज़रूर लिखें, जिससे आपकी रचना तक हम आसानी से पहुँच सके!