मन एक दर्पण अनुशीर्षक में://👇👇 ढूंँढ़ रहे थे जिसको पाने इस संसार में मन के दर्पण में झाँका तो दिखा अक्स उसका उस आईने में गुज़रता रहता है वक्त ज़िन्दगी के मुसाफ़िर की तरह यादें हृदय में रुक जातीं रुके रास्तों की तरह मन का विवेक और चेतना मन का हो होता दर्पण हृदय से निकल प्रेम मन से करता अर्पण