थी एक लाड़ली,बहुत ही अकड़ वाली, बात बात पर चिढती,और मे भी उसे चिढ़ाता, मासूम सा चेहरा छोटी-छोटी जुल्फें उसकी, हमेशा ही मुस्कुराती, गुस्सा तो जैसे नोक पर ही, लगती थी एक परी जैसी। साथ में पढ़ती साथ में झगड़ते साथ में खेलती, और बारिश की बूंदों को अपने हाथों मे लगाती, बनाती वह काग़ज की कश्ती मेरे लिए, और मैं बहाता उसी कश्ती को पानी में, उस वक़्त वह देती छाते से सहारा, कि मैं कहीं भीग ना जाऊं। बचपन मेरा बिता उसके साथ ही, और बड़ी होकर वो ओझल हो गई मेरी आँखों से, उसके बाद मैंने भी कोशिश ही नहीं की उसको ढूंढने की, लेकिन दिल में जरूर आश है, एक दिन उसकी झलक जरूर ही मिल जाएगी। ♥️ Challenge-790 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।