मेरा दिल इतना छोटा घर था कि उसकी अकेली अंधेरी गलियों में चुपचाप बैठे, सन्नाटे के शोर से डर लगता था सोचा एक साथी रख लूँ अपना डर, अपनी कुछ ख़्वाहिशें अपना जीना मरना संग तय कर लूँ धीरे धीरे कुछ और लोगों ने घर बनाये मेरी मांसपेशियों को चीर कर उन्होंने महल बनाएं धमनियों में धोखे का पानी भर डाला अपनी खुदगर्जी का दीपक यूँही जला डाला अब धू धू जल रहा है उसका हर कोना मैं खामोश देख रही हूँ उसका जलना आँखों से अब पानी कहाँ बहता है जो उससे इन अलिंदों को सींच डालूँ लेकिन आग से उगलते इस जून के महीने को देख रहा हूँ माहे रमज़ान में खुदा को कहीं अंदर तो कहीं बादलों में टटोलता हूँ आखिर अब तो अपनी मेहर कर दे या तो मेरी आँखों में नीर भर दे या अपनी बारिशों से मुझको नहला दे #दिल #घर #जलना #रमज़ान #खुदा #खुदगर्जी #अकेलापन #YQbaba #YQdidi