ज़िन्दगी के रंग कुछ फ़ीके पड़ गए थे... सोचा कुछ रंग कागज़ पर ही उतार लूँ... शायद इनकी कुछ छींटे ज़िन्दगी को रंगीन कर दें.. नाकामियों के लम्हों में खुशबू भर दे... यादों की चादर ओढ़ चुपके से गुनगुना दस्तक दे दे... कोई आकृति उभर कर वक़्त के किसी मोड़ पर झलक दिखला दे.. सुना है,, बेरंग ज़िन्दगी ... बोझ सी लगने लगती है,,... घाव बनकर हरपल चुभती है.. ख़ुद को कुछ ऐसा बनाऊँ, बड़ी भीड़ में सबसे आगे निकल जाऊं,, सबको अपना एक नया रंग दिखाऊँ,,।। दुनिया की आँखों में बसकर,, ज़िन्दगी को रंगों से भरकर, काटों भरी राह में भी फूल बनकर चमन महकाऊँ..!! ©rishika khushi #zindagikerang #ZindgiKeRang #अल्फ़ाज़_मेरे