सुनो न! मैं तो अब तक मिली भी नहीं हूँ तुमसे, लेकिन हर रात जब अकेले होती हूँ, तो तुम्हारी यादें; चुपके से चली आती हैं मुझे गुदगुदाने... बेशक! तुमको यकीं न होगा, पर यही सच है कुछ तो है; जो मुझे तुमसे बाँध रक्खा है यूँ तो मैं हजारों से जुड़ी हूँ, पर किसी का ख़्याल इस कदर नहीं आता जैसा कि तुम्हारे ख़्याल मुझे ले जाते हैं किसी मौन दुनिया में आख़िर क्यूँ? बस तुम्हारे ही ख़्याल मुझे मुझसे ज़ुदा करते हैं यह तो मुझे भी न पता लेकिन पूछती हूँ ख़ुद से मैं हर रोज यही प्रश्न... कोई उत्तर तो नहीं मिला अभी तक, इस तरह न जाने कब चुपके से नींद अपने आगोश में ले लेती है मुझको और फिर चले आते हो तुम हसीं ख़्वाब बनकर स्मिता तिवारी बलिया #यूनिक#मित्र#हेतु