रोज रोज ही रूठते हैं वो दिल हैसियत अपनी गवाना नही चाहता इतनी बार मना चुके है उन्हें हम "के" दिल ओर अब उन्हें मनाना नहीं चाहता #Zaalizajbaat #AkashAvi