जहां में कोई शय मुकम्मल कहां है! ख़ुशी हो कि ग़म हो मुसलसल कहां है! सभी तेज़ रफ़्तार से चल रहे हैं, हमारी तरह कोई पैदल कहां है! वो इस बार भी हो के् मायूस लौटे, अब इस दिल में पहली सि हलचल कहां है! अदा बे-नियाज़ी ये किस काम की अब, तुम्हारे लिए कोई पागल कहां है! वो रोया नहीं है जो मुझसे बिछड़कर, तो फिर उसकी आंखों का काजल कहां है? उसे मेरे ग़म का यक़ीं किस तरह हो? मेरी आंखों में भी तो जलथल कहां है हर इक लम्हा है रू-ब-रू वो हमारे, वो इक पल भी आंखों से ओझल कहां है! जो शहरों की रौनक से उकता गए हैं, वो अब ढूंढते हैं कि जंगल कहां है! बहुत चाहता हूं कि सो जाऊं मैं भी, मगर नींद से आंखें बोझल कहां है! दिले-नातवां को शिकायत है अब तक, इसे जिसकी चाहत थी वो पल कहां है! #cinemagraph #yqaliem #na_mukammal_shai #Tez_raftaar #dile_naatawan #urdupoetry #kahan_hai #khushi_gham नातवां - कमज़ोर, weak