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पतझड़ के मौसम में , तेज़ हवा के झोंकों से , वृक्ष स

पतझड़ के मौसम में ,
तेज़ हवा के झोंकों से ,
वृक्ष से पत्ते छूट जाते हैं ,
गिरते है वो धरा पे ,
अपनी ही शाख से टूट जाते हैं !
अपनी पहचान खोकर ,
लाचार और बेबस होकर ,
वीरान कर देते है उस वृक्ष को ,
और खुद मिट्टी में मिल जाते हैं !
पीले पत्ते पहचान खोकर भी ,
खाद बन वृक्ष को बढ़ाते हैं ,
एक बार फिर नवकोंपलों से ,
वृक्ष को हरा-भरा बनाते हैं !
जीवन में भी कई मौसम आते हैं ,
कभी पतझड़ तो कभी बसंत आते हैं ,
फिर भी कभी जीवन रुकता नहीं ,
तूफान के बाद भी कश्ती को
किनारे मिल जाते हैं !
जीवन का भी यही नियम है ,
विनाश के बाद
सृजन के रास्ते खुल जाते हैं !

©Sonal Panwar
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