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कितने फूल चमन के बिखरे,कितनी बागें उजड़ गईं। कितने

कितने फूल चमन के बिखरे,कितनी बागें उजड़ गईं।
कितने बच्चे अनाथ हो गए,कितनी कोखें उजड़ गईं।
ये सहसा ही नहीं हुआ था, साजिश इसमें भारी थी।
माना दुश्मन बाहर का था, पर घर की गद्दारी थी।
हाय सियासी हठ ने देखो, चालीस सैनिक खोए हैं।
हमने अपने आंगन में , बीज बबूल के बोए हैं।
धाक लगाए बैठे थे वो, वो जाल बिछाए बैठें थे।
कायर क्या लड़ सकते थे जो, चक्रव्यूह रचाए बैठे थे।
सन् बासठ के युद्ध में हमने,उसको धूल चटाई थी।
नब्बे हजार बंदी सैनिक, इंदिरा ने लौटाई थी।
नहीं सामना कर सकता जो, किसी तरह से भारत से।
वो लुका छिपी खेल खेलता, हर दिन झुरमुट की आहट से।
उनको शायद ज्ञान नहीं था, छप्पन इंची सीने का।
एक साधु के नेता होकर, निर्भय होकर जीने का।
पठानकोट हमला कर पाक,तनिक नहीं शरमाया था।
उरी, बालकोट से लेकिन, सारा विश्व थर्राया था।
नमन आज है उन वीरों को, जो छोड़कर चले गए।
जयचंदों के हाथों लेकिन,आज हम फिर से छले गए। #पुलवामा #पुलवामा_आतंकी_हमला #मौर्यवंशी_मनीष_मन #yqdidi #tantak_mann
#365days365quotes
कितने फूल चमन के बिखरे,कितनी बागें उजड़ गईं।
कितने बच्चे अनाथ हो गए,कितनी कोखें उजड़ गईं।
ये सहसा ही नहीं हुआ था, साजिश इसमें भारी थी।
माना दुश्मन बाहर का था, पर घर की गद्दारी थी।
हाय सियासी हठ ने देखो, चालीस सैनिक खोए हैं।
हमने अपने आंगन में , बीज बबूल के बोए हैं।
धाक लगाए बैठे थे वो, वो जाल बिछाए बैठें थे।
कायर क्या लड़ सकते थे जो, चक्रव्यूह रचाए बैठे थे।
सन् बासठ के युद्ध में हमने,उसको धूल चटाई थी।
नब्बे हजार बंदी सैनिक, इंदिरा ने लौटाई थी।
नहीं सामना कर सकता जो, किसी तरह से भारत से।
वो लुका छिपी खेल खेलता, हर दिन झुरमुट की आहट से।
उनको शायद ज्ञान नहीं था, छप्पन इंची सीने का।
एक साधु के नेता होकर, निर्भय होकर जीने का।
पठानकोट हमला कर पाक,तनिक नहीं शरमाया था।
उरी, बालकोट से लेकिन, सारा विश्व थर्राया था।
नमन आज है उन वीरों को, जो छोड़कर चले गए।
जयचंदों के हाथों लेकिन,आज हम फिर से छले गए। #पुलवामा #पुलवामा_आतंकी_हमला #मौर्यवंशी_मनीष_मन #yqdidi #tantak_mann
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