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काश! तपते यूँ ही, साथ बैठकर दोस्तों के, करते फिर

काश!
तपते यूँ ही,
साथ बैठकर 
दोस्तों के,
करते फिर वही बातें.
अल्हड़, अलमस्त
और बेफ़िक्री की।
फिर से जीते उन्हीं बीते लम्हों को।
हँसते, मुस्कुराते और..
निकालते मन के सारे गुबार।
जला डालते सारे गमों को
इसी अग्नि में।
भर जाती गर्माहट अंतर तक।
मिलती एक नई ऊष्मा,
शरीर को,मन को,और 
इस सिमटे हुए से हृदय को।
फिर गर्माहट के लिए
नहीं पड़ती कोई जरूरत,
किसी को 
किसी और से जलने की।।
✍परेशान✍

©Jitendra Singh #tapan Chaudhary Sr Chaudhary sad boy Anika Bhardwaj Gauhar Aziz S k pareek
काश!
तपते यूँ ही,
साथ बैठकर 
दोस्तों के,
करते फिर वही बातें.
अल्हड़, अलमस्त
और बेफ़िक्री की।
फिर से जीते उन्हीं बीते लम्हों को।
हँसते, मुस्कुराते और..
निकालते मन के सारे गुबार।
जला डालते सारे गमों को
इसी अग्नि में।
भर जाती गर्माहट अंतर तक।
मिलती एक नई ऊष्मा,
शरीर को,मन को,और 
इस सिमटे हुए से हृदय को।
फिर गर्माहट के लिए
नहीं पड़ती कोई जरूरत,
किसी को 
किसी और से जलने की।।
✍परेशान✍

©Jitendra Singh #tapan Chaudhary Sr Chaudhary sad boy Anika Bhardwaj Gauhar Aziz S k pareek