अब कुछ घरों में यूं होता है उन दिनों का खून कैसे अशुद्ध हो सकता है सब जानते हैं ये.. अब ज्यादा भेद भाव न होता है ये कुदरती है.. इसमें दोष कहां कन्या का होता है.. ये ना होता तो जिस वंश का गर्व सब करते है वो कहां से आगे बढ़ता.. बस ज़रूरत समाज में महिलाओं के साथ साथ पुरुषों को भी इस संदर्भ में जागरूक करना है.. समस्या.. समस्या ना रहेगी.. स्त्री पुरुष दो पहिया है जीवन रथ के.. दोनों को ही मिल के इस रथ को खेना है... हर महीने की है ये कहानी, हर लड़की की ये कहानी एक लड़की कि जुबानी, ऐसा दर्द जो सहना है, बदले में चुप रहना है, जो दर्द वो सहती हैं, फिर भी किसी से ना कहती हैं,