झिलमिल सितारों का जहां कहीं खो गया है शहरों की चकाचौंध में सुकून जो कभी खुद में तलाशती थी वो अब कहां मिलता है शिवालयों में घड़ी की टिक टिक का शोर भी अब खो गया कहीं दीवारों में वक़्त का पहिया कुछ यूं घूमा है खो गया इतिहास कहीं अखबारों में संयुक्त, साझेदारी,रिश्तेदारों का मेला बट गया एकांकी परिवारों मैं प्रेम, प्रयाग, बलिदान, अभिमान सब बट गया घरबारों में गुजरे वक़्त के कुछ पन्ने मैले हुए , कुछ जल कर के राख हुए इंसानित भी देखो बट गई इंसानों में इंसान भी देखो बट गया हालातों मैं