#अधूरा_किस्सा उसकी आँखों में गहरी रातों का अंधेरा था.. एक सूनेपन की ख़ामोशी.. जैसे कहना बहुत कुछ चाहती हो लेकिन किसी वजह या अपनी ही बेख़याली में मन मारकर बैठी हुई हो। उसको जब भी देखता तो लगता जैसे साहिर ने अमृता को सोचकर ही ये लिखा होगा- तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं। रातों के भी साये हो सकते हैं, ये बात उसकी आँखों में देखकर यक़ीन किया जा सकता था। उसकी आँखों के साये में रात के कइयों साये थे। देर रात तक वो यूं ही बैठे-बैठे अपनी नाइट-लैम्प के नीचे कुछ पढ़ा करती थी। जब पढ़ने लगती तो जैसे रम सी जाती थी.. उसके लिए मैं अकसर देर रात तक चाय बनाया करता था। चाय बेहद ही पसंद थी उसे। जब भी वो मुझे चाय लिए अपने सामने देखती तो फिर बहुत हौले से मुस्कुराती और अपनी नाज़ुक हथेलियों से मेरी मुट्ठियों को भीचकर कहती- मेरी इस रात में कोई चाँद भरता है.. तो वो तुम हो। उसका शुक्रिया कहने का अंदाज़ सबसे जुदा था। उसकी गहराई हुई आँखों में कई भेद थे। उसके चेहरे की सादगी दुनिया-भर की रंगत को एक ही पल में फ़ीका कर सकती थी। वो पहली लड़की थी जिससे मुझे मुहब्बत हुई थी। वो जब भी याद आती है वही गाना याद आता है- चलो एक बार फिर से। क़ाश! ये यादें कभी हक़ीक़त के दरम्यान साँसें ले सकती लेकिन कोशिश करते रहने में हर्ज़ ही क्या है? ये जानते हुए कोशिश करना कि वो मुमकिन ही नहीं.. बयान करता है कि मेरा उसके लिए दीवानापन कैसा है? ©Prakash Vats Dubey #solotraveller