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- साहब ये तीसरा महीना होने को आया। पगार कब दोगे?(

- साहब ये तीसरा महीना होने को आया। पगार कब दोगे?( एक मजदूर हाथ जोड़ते हुए)
- अभी बहुत काम पड़ा है। काम खत्म कर पहले। जब देखो पगार पगार।( हाथों में नोटों की गड्डियां गिनते हुए)
- साहब घर पे खाने को कुछ नहीं है। बेटी भी बीमार है, डॉ का खर्चा कहां से लाऊं मैं भिखारी?( रोते हुए भीख मांगने की हालत में) कुछ तो दे दो साहब।
- चल जाकर अपना काम कर। और पैसे की इतनी ही ज़रूरत है तो बेटी को भेज दे एक रात के लिए मेरे पास। (राक्षसी हंसी हंसते हुए) और अगर इज्ज़त का इतना ही ख्याल है तो भीख मांगना छोड़ और काम पूरा कर।


 और कुछ यूं ही वो मजदूर अपनी बेइज्जती का घूंट पीकर पेट की आग बुझाने को चल पड़ा। ना जाने ऐसी कितनी कहानियां दिखती है हमें रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में। और हम या तो उसे हंसी में उड़ा देते हैं या फिर "छोड़ो भी हम क्यों फंसे इस पचड़े में" बोल निकल जाते हैं। #nastowrimo में आज एक कहानी लिखें जो वार्तालाप की शक्ल में हो। 
कहानी दो तीन वाक्यों में हो। दो पात्र आपस में बात कर रहे हों। 
#यादनहींरहा  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
- साहब ये तीसरा महीना होने को आया। पगार कब दोगे?( एक मजदूर हाथ जोड़ते हुए)
- अभी बहुत काम पड़ा है। काम खत्म कर पहले। जब देखो पगार पगार।( हाथों में नोटों की गड्डियां गिनते हुए)
- साहब घर पे खाने को कुछ नहीं है। बेटी भी बीमार है, डॉ का खर्चा कहां से लाऊं मैं भिखारी?( रोते हुए भीख मांगने की हालत में) कुछ तो दे दो साहब।
- चल जाकर अपना काम कर। और पैसे की इतनी ही ज़रूरत है तो बेटी को भेज दे एक रात के लिए मेरे पास। (राक्षसी हंसी हंसते हुए) और अगर इज्ज़त का इतना ही ख्याल है तो भीख मांगना छोड़ और काम पूरा कर।


 और कुछ यूं ही वो मजदूर अपनी बेइज्जती का घूंट पीकर पेट की आग बुझाने को चल पड़ा। ना जाने ऐसी कितनी कहानियां दिखती है हमें रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में। और हम या तो उसे हंसी में उड़ा देते हैं या फिर "छोड़ो भी हम क्यों फंसे इस पचड़े में" बोल निकल जाते हैं। #nastowrimo में आज एक कहानी लिखें जो वार्तालाप की शक्ल में हो। 
कहानी दो तीन वाक्यों में हो। दो पात्र आपस में बात कर रहे हों। 
#यादनहींरहा  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
kajalkiran8793

Kajal Kiran

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