दोहावली कवि भाव विहिन समुद्र जल लागे, नीर अथाह पर प्यास नाहि बुझावे।। तरु नाहि उधम - नीच लगावे, जेहू तरु काट मरू है बनावे।। उच्च- नीच का भाव भयो विकराल, पूत कपूत करे जनक से सवाल।। काहे पिता - पुत्र में होत है बवाल, देख प्रभु धरा पर लावे हैं भुजाल।। पुत्र मोह बंधन में बंधी हुई हैं माता, जान पुत्र तभे फायदा है उठाता।। #मेरा new dohawali...