अगर मैं मर भी जाऊ घर मैं बंद होकर समेटे अपनी लम्बी चादर को उसका ही कफ़न बनाऊ अगर मैं मर भी जाऊ अपने गर्म कपड़ो मैं कॉफ़ी बिस्कुट छोड़ के अपने ख्यालों का पुलाव बनाऊ अगर मैं मर भी जाऊ खुद को बस बचाने में सोने के सिक्को को गड़ाने में मरघट ए मेहफिल सजाने में बोतल बंद सांसें बेंच जाऊ सवाल ये नहीं की मैं मर जाता सवाल ये है इंसानियत मार के कहा जाऊ मरी आत्मा ना जल रही ना दफ़न हो रही मेरी गड़े सिक्कों की खनख़नाहट कोई तो सुन ले मेरी हक़ जमा लिया जो भी मिला मुझे इस मिट्टी में धूल झाड़ता रहा उम्रभर अब बैचैन मिलने को फिरसे इस मिट्टी में ©Yash Verma #karmawilldecide #socialresponsibility #HelpOthers #Be_Kind #covidindia