तुम्हें क्या पता शीतस ठिठुरन असहाय साँझ के सूरज का मुठ्ठी में भिंच स्याह हो जाना आँखों का हथेली पर ठहरना आशा की अट्टालिकाओं का धराशायी होना...खंडहर हो जाना बेबस सिमटती उँगलियों पर सर्द मौसम की बोझिल हवा में रक्त की गंध घुल जाना... रक्त! हृदय की चेतना का और दिवस की कल्पना का सूर्य के अवसान का! जलते हुए मसान का... जहाँ शाश्वत है प्रीत अनन्त युगों से और विचरता है चाँद ठिठुरता! सिहरता! रतजगे करता #toyou#yqmoon#yqlife#yqloveforlife#yqcold