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जिस दिन हम तुम नदियों जैसे, एक सागर में मिल जाएंगे

जिस दिन हम तुम नदियों जैसे,
एक सागर में मिल जाएंगे!
उस दिन सारे जटिल सिंहासन, 
तिनके जैसे हिल जाएंगे!

बहुत हुई उन्मादी बातें, 
कुछ तो अपना जोर लगाओ!
दिल्ली की उस खुली पतंग पर ,

जिस दिन हम तुम नदियों जैसे, एक सागर में मिल जाएंगे! उस दिन सारे जटिल सिंहासन, तिनके जैसे हिल जाएंगे! बहुत हुई उन्मादी बातें, कुछ तो अपना जोर लगाओ! दिल्ली की उस खुली पतंग पर ,

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