Nojoto: Largest Storytelling Platform

मेरे कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तु

मेरे कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम।

मैं जानना चाहता हूँ,
क्या उस के साथ भी चलते हुए शाम को यूं हीे
बेखयाली में उसके साथ भी हाथ टकरा जाता है तुम्हारा,
क्या अपनी छोटी ऊँगली से उसका भी हाथ थाम लिया करती हो

क्या वैसे ही जैसे मेरा थामा करती थीं
क्या बता दीं बचपन की सारी कहानियां तुमने उसको
जैसे मुझको रात रात भर बैठ कर सुनाई थी तुमने

क्या तुमने बताया उसको कि पांच के आगे की
हिंदी की गिनती आती नहीं तुमको
वो सारी तस्वीरें जोतुम्हारे पापा के साथ,
तुम्हारे भाई के साथ की थी,जिनमे तुम
बड़ी प्यारी लगीं, क्या उसे भी दिखा दी तुमने

मैं पूंछना चाहता हूँ कि
क्या वो भी जब घर छोड़ने आता है तुमको
तो सीढ़ियों पर आँखें मीच कजन, 
क्या मेरी ही तरह उसके भी सामने माथा
आगे कर देती हो तुम वैसे ही, जैसे मेरे सामने किया करतीं थीं
सर्द रातों में, बंद कमरों में क्या वो भी मेरी तरह
तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उँगलियों से
हर्फ़ दर हर्फ़ खुद का नाम गोदता है,और
क्या तुम भी अक्षर बा अक्षर पहचानने की कोशिश करती हो
जैसे मेरे साथ किया करती थीं

मेरे कुछ सवाल हैं
जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम।

©Raj Alok Anand #zakhirkhanspecial
मेरे कुछ सवाल हैं जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूंगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम।

मैं जानना चाहता हूँ,
क्या उस के साथ भी चलते हुए शाम को यूं हीे
बेखयाली में उसके साथ भी हाथ टकरा जाता है तुम्हारा,
क्या अपनी छोटी ऊँगली से उसका भी हाथ थाम लिया करती हो

क्या वैसे ही जैसे मेरा थामा करती थीं
क्या बता दीं बचपन की सारी कहानियां तुमने उसको
जैसे मुझको रात रात भर बैठ कर सुनाई थी तुमने

क्या तुमने बताया उसको कि पांच के आगे की
हिंदी की गिनती आती नहीं तुमको
वो सारी तस्वीरें जोतुम्हारे पापा के साथ,
तुम्हारे भाई के साथ की थी,जिनमे तुम
बड़ी प्यारी लगीं, क्या उसे भी दिखा दी तुमने

मैं पूंछना चाहता हूँ कि
क्या वो भी जब घर छोड़ने आता है तुमको
तो सीढ़ियों पर आँखें मीच कजन, 
क्या मेरी ही तरह उसके भी सामने माथा
आगे कर देती हो तुम वैसे ही, जैसे मेरे सामने किया करतीं थीं
सर्द रातों में, बंद कमरों में क्या वो भी मेरी तरह
तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उँगलियों से
हर्फ़ दर हर्फ़ खुद का नाम गोदता है,और
क्या तुम भी अक्षर बा अक्षर पहचानने की कोशिश करती हो
जैसे मेरे साथ किया करती थीं

मेरे कुछ सवाल हैं
जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूगा तुमसे
क्योंकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नहीं हो तुम।

©Raj Alok Anand #zakhirkhanspecial