सर्दी की इक शाम देखा मैंने गुलाबों का एक गुलिस्तां, याद आई तेरे लबों की, क्या नीयत है मेरी, समझी मेरी जां..? कुछ ऐसी ही नाज़ुक और पुर-सुरुर हो तुम, हूर न भी हो तो भी ख़ुदा का नूर हो तुम...।। OPEN FOR COLLAB •• Chilly Festive Season's Team Challenge 4 #ATfestive4 • Collab on this beautiful background. • Invite more and more people for collaboration.