मिट्टी से उसका गहरा है नाता सरल जीवन है उसको भाता, कड़ी धूप में अपनी चमड़ी जलाकर बंजर धरती पर वो सोना है उगाता! अपने श्रम की निश्चल धारासे वो भिगोता है धरतीका शुष्क छाती, अपने लहू का कत्रा-कत्रा से वो गीली करता है खेती के लिए माटी! बीज नहीं वो अपने हाथों से नव-जीवन का रोपण करता है, भुलाकर अपना निजी स्वार्थ वो किसानी में खुदको समर्पण करता है! सारे ब्रह्मांडका कर्ताधर्ता वैसे तो हैं वो "सर्वव्यापी भगवान्", पर सारे संसार का पेट जो भर्ता भगवान् का ही दूसरा रूप- वो "मेहनती किसान"!! मिट्टी से उसका गहरा है नाता सरल जीवन है उसको भाता, कड़ी धूप में अपनी चमड़ी जलाकर बंजर धरती पर वो सोना है उगाता! अपने श्रम की निश्चल धारासे वो भिगोता है धरतीका शुष्क छाती, अपने लहू का कत्रा-कत्रा से वो