अक्सर लोग बारिश को देखते हैं, खुश होते हैं। पर मेरी जिंदगी की वो पहली बारिश मुझे हमेशा तड़पाती हैं। (Read in caption) मुझे याद हैं आज भी वो पहली बारिश। मेरी जिंदगी की पहली बारिश। जिसे मैंने न सिर्फ़ महसूस किया था बल्कि अपनी आँखों से देखा भी था। या यूँ कहिए जैसे कोई जिद्दी बच्चा चाँद लाने की जिद्द कर रहा हो, और उसे मिल भी गया हो। मेरे पैर तो जैसे आसमाँ में उड़ रहे थे। अपनी इन आँखों से पहली बार मैं जिंदगी की पहली बारिश को देख रही थी। पहले भी बारिश होती थी पर तब सिर्फ़ महसूस करती थी। अब तो कुदरत की अनमोल नजारें देख रही थी। बारिश जो हर निर्जीव चीज़ में जान भर देती हैं, भगवान ने उसे यह हुनर सौंपा था। मोती जैसे बारिश की बूँदें चमक रही थी। तभी माँ के कदमों की आहट ने हमारी खामोशी तोडी़। तुम्हें पता हैं नयना नंदिश कहाँ चला गया? नहीं माँ। क्यों क्या हुआ? अरे जब भी बारिश होती थी तो वो घर आता था न पकौडै़ खाने के लिए। बस उसकी याद आ रही थी। देख मैंने तो पकौडै़ भी बनाए हैं उसके लिए। हाँ, माँ पता नहीं कहाँ चला गया। बताया भी नहीं। दो हफ्ते हो गए।आखिर उसे मेरी आँखों के बारे में भी तो बताना हैं। तभी पडो़स में रहने वाली वर्मा जी आ जाती हैं।