मुक़म्मल सा लगता है मेरा अधूरा इश्क़ मुझे, क्योंकि अब बस मेरा हक़ है उन सभी ख्वाबों पर जो हमने मिलके सजाये थे अब बस मेरे ज़ेहन में कैद है वो सभी पल जो हमनें मिलके बिताए थे, क्योंकि वो धड़कने मुझमे अब भी जिंदा है जो अपने सीने से लगाके तुमने मुझे सुनाए थे मिसाल देते है आशिक़ आज भी उस तौर-ए-इश्क़ की जो हमनें मिलके बनाये थे, क्योंकि अब मैं इकलौता वारिश हूँ उन बेशुमार चाहतों का जो कभी हम दोनों के हिस्से में आये थे, मुक़म्मल सा लगता है मेरा अधूरा इश्क़ मुझे....... ~ शिवांश #urstrulyShiv ©Shivansh Srivastav #Light