तमाम उम्र बीत गई मुझे मिटाने में सिर्फ इश्क़ ही तो था मेरे मयखाने में नाचीज़ की हरामपंथी तो बिल्कुल नहीं थी फिर क्यों जुगत की लोगों ने मुझे मिटाने की इस ज़माने में। रोज़ सिर्फ एक ही बोतल खोलता चन्द घंटों मैं निहारते हुए बंद कर देता सिलसिला ये रोज़ाना होता मेरे अपने ज़माने में फिर क्यों जुगत की लोगों ने इस ज़माने ने मुझे मिटाने में। सिर्फ एक उसी बोतल की खातिर बहुत सज़ा पा चुका उससे किए हर वादों को निभा चुका अब उसकी फुरकत तो देखो इश्क़ मेरे से लड़ाई है मेरे अलावा हाथ किसी और ने कैसे लगाई है अब जुगत की ज़रूरत नही लोगों मुझे बस मिटा ही डालो इसी ज़माने में। #उम्र #इश्क #मयखाना #बोतल #सिलसिला #वादा #yqdidi #yqhindi 𝘠ourQuote Didi Vaibhav Dev Singh