2018(आस पास कहीं) ज़िंदगी ने जीवन में मृत्यु दी हो जैसे धड़कन की रफ्तार बनी रहे ज़हन को कलम का स्पर्श कराया ना इस वक्त की बात थी ना उस वक्त का बदलाव साल आगे निकलते गए शकल सूरत बदलती रही हालत ए हाल पर कोई पूर्णविराम सा हो जैसे शरीर ने बरसों की थकन सीने से लगा रही है सांसों का चलना एक आश्चर्य हो जैसे आत्मा मानो सदियों से मृत्यु लिख रही है घड़ियों की रफ्तार पसीच रही है गला मन के कोने खंडर हो गए हो जैसे दिन और रात दोनो ही एक हैं जन्म से धूप की नरमी और चांद की ठंडक,कभी चखी न हो जैसे वो पुर्ज़ा जिसे दुनिया दिल बताती है किसी चक्रवाती तूफान का आदि हो गया है अनुभूतियों का कंपन एक नया विषाद है जीवन का चक्का सुन्न हो,शून्य को समा गया हो जैसे और मैं इसे कविता का नाम नहीं दे सकी। ©Meera #नोजोटोहिंदी #बातें #अनकहा #पुराना