जैसे समुंदर की कुछ छींटे आ गिरी हो मेरे मस्तक पर और मैं ठंडक से सिहर उठी। जैसे सूखी मिट्टी पर पड़ी मोटी - मोटी बूंदे बारिश की और चारों ओर खुशबू हो घुली। जैसे तपते रेगिस्तान पर झुक गया हो घना आसमान और उढ़ा दी हो चूनर हरी। जैसे बगिया में कोई मनचला भँवरा आया हो, और छूकर खिला गया हो मुरझाती कली। कुछ ऐसा ही उसका आना मेरे जीवन में, और दिखा देना उत्साह भरी राह जीने की। लालायित करना मुझे अपने हिस्से की जिम्मेदारियों को निभाने के लिये, जिन्हें मैं छोड़ने को अग्रसर थी। या कहलो, मैं खुद से भाग रही थी अपनी कमजोरियों से वशीभूत होकर। क्या इतना ही काफी नहीं था उसका व्यक्तित्व मुझे उसकी ओर आकर्षित करने के लिये? बिल्कुल काफी था। मैं क्यूँ ना आत्मसात करुँ उसके गुणों को? मैं क्यूँ ना उसके लिये अपने मन में आते प्यार को बढ़ने दूँ? जबकी, मैं जानती हूँ की जब तक उसकी मुस्कुराहट मेरे साथ है मैं कभी हार नहीं मानूंगी, चाहे जितनी ही उथल पुथल और अव्यवस्था हो जीवन में। मैं उससे प्राप्त हुआ संबल नकार नहीं सकती। मेरे लिये उसका महत्व, मैं झुठलाना नहीं चाहती। क्या ये स्वीकारने के लिये मुझे दुनियाँ की स्वीकृति लेनी होगी? या उसे सबसे छुपा कर रखना होगा? या उसके साथ मेरे जुड़ाव को कोई नाम देना होगा? या फिर बोल दूँ, की आज जो मैं हूँ उसका श्रेय किसी को नहीं जाता? इन्हीं सवालों के जवाब ढूँढती हुई अक्सर मैं लोगो को विस्मित जान पढ़ती हूँ । ये उधेड़बुन कभी तो खत्म हो। कभी तो ऐसा हो, कि मैं बेहिचक उसे अपना सकूँ। छुपा हुआ महत्व #stories