कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए , कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये । मंडी बंद करण की बात अर फसलों के रेट कंपनी के हाथों में हो लिए , किसान खड़े लखावे कर्जे के मुंह में बहुत बड़े हो लिए । बैल बुग्गी छुटगी , बैंकों त लोन लेकर किसान दिवाले हो लिए, सरकार इभी कोनी मान्दी , हालात बहुत घणै माड़ै हो लिए । कानून जो बदले सरकार ने , किसानों के अरमान मसलने वाले हो लिए , पेट की भूख , बालकां की पढ़ाई और ढूंढ के सपने चकनाचूर हो लिए । कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए , कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये । आजकल किसानों की हालात पर यह कविता है। घात - शरीर , घणै - बहुत ज्यादा , इभी - अब भी , मान्दी - मानती , माड़ै - खराब , ढूंढ - मकान , कुर्ते पजामे पाट के , घात कति काले हो लिए , कर कर संशोधन बिला में , इस टैम घणै चालै हो लिये ।