पहली रात, जिसके बाद समाज उसे वैश्या कहता हैं...! रात... रात भर मेरी आबरू को, अनजान की आगोश में बिखरता देखा.. जब होश में आए, तो वक़्त को हथेली से फिसलता देखा.. जो बात महफ़ूज़ थी जमाने से, उस रोज़ मेरे दामन को सरकता देखा... मेरी एक आह से, मैं खुद सहम जाऊं, उस रात बिस्तर पर मेरे दर्द को सिसकता देखा... बेबस और मायूस मेरे दिल-ए-जज़्बात थे, जब सुबह की रोशनी में आईना देखा.. संदीप कोठार sandeepmkothar@gmail.com पहली रात, जिसके बाद समाज उसे वैश्या कहता हैं...! रात... रात भर मेरी आबरू को, अनजान की आगोश में बिखरता देखा..