राजनीतिक हिंसा की घटनाओं से मुंह मोड़ने की किसे गंभीर परिणाम होते हैं इसका परिणाम है बंगाल के हरिपुर जिले में तृणमूल कांग्रेस के एक नेता की हत्या के बाद इसे दल के विरोधी समझ जाने वाले गुट के करीब 10 लोगों की हत्या की घटना इसलिए को पैदा करने वाली है क्योंकि लोगों को जिंदा जला दिया गया बंगाल में इस तरह की घटना नहीं है कुछ समय ही पहले 1 दिन में 2 पार्षद की हत्या की गई यह दोनों हत्या निकाय चुनाव के बाद हुई थी हत्या में हिंसा ने अन्वेषण कर्ताओं को याद दिलाई थी जो विधानसभा चुनाव में बाद में हुई थी जिन्होंने तोड़मल कांग्रे समर्थन भाजपा वामदल और कांग्रेसी समर्थन में टूटे पड़े थे प्रदेश के साथ करने वाले थे बल्कि और लूटपाट की थी यह इतनी भीषण थी कि तमाम लोगों को जान बचाने के लिए पड़ोसी राज्य असम करना पड़ता था मुख्यमंत्री ने उनकी आलोचना हुई थी यह भी है कि हिंसा के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही थी इसी कारण कोलकाता न्यायालय में इन घटनाओं की सीबीआई जांच के आदेश देने पड़े उच्च न्यायालय घटनाओं की जांच राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी कराई थी जिसे अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बंगाल में कानून का राज नहीं सत्ता में बैठे लोगों का कानून चल रहा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ना तो बंगाल शासन को लज्जित करने वाली मानव अधिकारी आयोग की रपट रास आई और ना ही उन्होंने कोई सबक सीखा इसी का परिणाम है कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा का सिलसिला थमा नहीं रहा था इसका कारण यह है कि परिवर्तन के नारे के साथ सत्ता में आई तो उन कांग्रेसी तौर-तरीकों को अपना लिया और जो वामदलों ने अपना रुख रखे बंगाल की स्थिति है ना केवल कानून व्यवस्था के चिंताजनक है बल्कि लोकतंत्र के लिए भी उचित होगा चुनाव आयोग इस राज्य में होने जा रहे उपचुनाव के केंद्रीय बल तैनात करने की मांग पर गंभीरता से विचार करें ©Ek villain #बेलगाम बंगाल को समझाने की जरूरत #Connection