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वर्तमान परिदृश्य में मेरी स्वरचित काव्य रचना #बस_य

वर्तमान परिदृश्य में मेरी स्वरचित काव्य रचना #बस_यही_रीत_निभाये_जा_रहा_हूँ।।।।

हम दखल नही देते कानून में,
क्योंकि हमें डर है सजा की।
लेकिन हकीकत यह है कि, 
हम आज भी ताने बाने में है समाज के।।
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

समाज चाहे छोटी हो या मोटी,
भाव सबका एक है।
गर्व होता है अपने ,
समाज- जाति पर,
क्योंकि हम इन्ही से पैदा हुए है।।
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

धारणाएँ व परम्पराएँ से बंधे से हम,
बाकी स्वच्छंद विचरण करना हर कोई चाहता।
लेकिन समाज की मर्यादा तोड़कर नही,
मर्यादा में लोग दुःख भी सहन कर लेते है,
क्योंकि स्वाभिमान उन्हें झुकने नही देता।।
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

वैसे मुझे किसी के बारे में कहने का क्या अधिकार,
लेकिन संस्कारों में सीखा,
अन्याय में बोलना,
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

#धीर

©Narpat Ram
वर्तमान परिदृश्य में मेरी स्वरचित काव्य रचना #बस_यही_रीत_निभाये_जा_रहा_हूँ।।।।

हम दखल नही देते कानून में,
क्योंकि हमें डर है सजा की।
लेकिन हकीकत यह है कि, 
हम आज भी ताने बाने में है समाज के।।
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

समाज चाहे छोटी हो या मोटी,
भाव सबका एक है।
गर्व होता है अपने ,
समाज- जाति पर,
क्योंकि हम इन्ही से पैदा हुए है।।
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

धारणाएँ व परम्पराएँ से बंधे से हम,
बाकी स्वच्छंद विचरण करना हर कोई चाहता।
लेकिन समाज की मर्यादा तोड़कर नही,
मर्यादा में लोग दुःख भी सहन कर लेते है,
क्योंकि स्वाभिमान उन्हें झुकने नही देता।।
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

वैसे मुझे किसी के बारे में कहने का क्या अधिकार,
लेकिन संस्कारों में सीखा,
अन्याय में बोलना,
बस यही रीत निभाये जा रहा हूँ।।।।

#धीर

©Narpat Ram
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