पूछ बैठी मैं हृदय से एक दिन अकस्मात, क्यों खिलते हैं प्रेम सरोवर में जलजात? क्यों भावों का भँवर मुझको घेरता है? क्यों नेह मेरी ओर उत्कंठा से देखता है? लिए प्रेमभाव हृदय समक्ष आकर बोला, प्रेम से क्यों लिप्त हूँ भेद इसका खोला। सुनो! कोमलांगी तुम सृष्टि को जीवन देने वाली हो, विभिन्न रूपों में प्रेम का संचार करने वाली हो। सर्वोच्च भाव तुझ में प्रीति का, तुझमे ही समावेश ह्रीति का। तुम माँ की ममता का सार हो, तुम अनंत का विस्तार हो। अकाट्य दुःखों का जब तुम स्नेह से नाश करती हो, तुम माँ भवानी सम शत्रु नाशक लगती हो। जब घेर ले सारे कष्ट कर विषाद का आह्वान, दे सको दुःखों को विराम ,इसीलिए है प्रेम का तुम्हारे हृदय में स्थान। नमस्ते लेखकों❤ तैयार हो हमारी "काव्योगिता" के तीसरे पड़ाव के लिए?! अक्सर हम अपने कवितायों के जरिए से अपने आप से या कभी-कभार कल्पित चरित्रों से बात करते है। आज आपको कुछ इसी प्रकार का कार्य करना है। आपको एक ऐसी कविता लिखनी है जिसमें आपको किसी भी एक भावना से वार्तालाप करना है। कविता में 4 छंद होना अनवार्य है। जिस भावना को अपने दर्शाया है, उसका उल्लेख अनुशीर्षक में करे। हिंदी शब्दों और व्याकरण पर खास ध्यान दिया जाएगा। भाव :- प्रेम