सुर्ख़ हवाओं ने रुख़ ऐसा बदला , न टल सका महाविभाजन का मसला, धर्म जात की हवाएँ ऐसी चली, चढ़ गए बेचारे निर्दोष बलि, इस हवा में भौतिक स्थिति टुकड़े ही नही, लाखों लोगों के दिल बेघर और रूह सुनसान हो गई, ये धर्म का खेल न जाने कितनों को अपने साथ लेकर जाएगा, समता का भाव दिखा कर,पीठ पीछे छुरा रोपते हो, धर्म की आड़ में न जाने कितनों का गला घोंटते हो, बन्द करो ये खिलवाड़, तोड़ दो ये धर्म की ये दीवार, गले मिलों आपस मे दिखाओ जरा भाईचारे सा प्यार। बदल दो ज़रा इन सुर्ख़ हवाओ का रुख बंधुता की तरफ आज का विषय:- सुर्ख हवाएँ। 👉आप सभी Collab करने के लिए आमंत्रित हैं। 👉Collab करने के बाद कॉमेंट में Done करना ना भूलें। 👉 और लोगों को Collab करने के लिए आमंत्रित करें।