सतरंगी आयाम समेटे लगती उजली धूप, नूतन नव परिधान में जैसे निखरा तेरा रूप, सागर सी गहरी आँखें घन कुंतल ओढ़े गात, आज प्रकृति से ताल-मेल है मोहक यह प्रतिरूप, सरिता के पावन जल जैसा मन में उठे तरंग, छलक रहा सौंदर्य स्वतः गगरी छलके नलकूप, अंदर-बाहर हुआ एक सा अद्भुत यह एहसास, घ्यान गुफा में मिले स्वयंभू सुंदर शांत स्वरूप, हृदय हुआ आनंदित जागा मन में फिर विश्वास, बगुला वृत्ति छोड़कर गहने लगा सार ज्यों सूप, समय चक्र के साथ स्वयं में है बदलाव ज़रूरी, सुंदर समझ करो विकसित जो हो मौसम अनुरूप, छोड़ चाकरी मन की गुंजन प्रभु पद शीश नवाओ, बंधनमुक्त जिओ जग में जैसे जीता है भूप, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #बंधनमुक्त जिओ जग में#