है विकलता की लयता, फिर भी मन का राग सुनाएं। स्वप्न भरे संसार मे वह भी, आपना नित नए राग सुनाएं।। देख नव नूतन, उपहासों मैं भी नव यौवनता का, विम्ब बिंदु कहलाये, पर सदा विभिन्नता ही लाएं।। योगेश कुमार मिश्र"योगी"