#OpenPoetry “ रक्षाबंधन” स्नेह ,प्रेम,सौहार्द का तर्पण,अखंडित विश्वास का दर्पण, कच्चे धागों का पक्का संगम,ऐसा मनभावन ये रक्षाबंधन।। कृष्ण- द्रौपदी के पवित्र बंधन के किस्से अपार सुने हैं, नारायण और गिरिजा भी तो इसी बंधन में बंधे हैं, जब संकट पड़ा द्रौपदी पर और कोई न रक्षा को आया, तब मीलों दूर से केशव ने ही भ्राता का फर्ज निभाया। नहीं कोई पराकाष्ठा जिसकी,जीवन भर का ऐसा है वचन, ऐसा मनभावन ये रक्षाबंधन..।। ये बंधन ही है जिसने इतिहास में दो धर्मों को जोड़ा था, बुलावे पर कर्णावती के, हुमायूँ रण से दौड़ा था, जब पोरस को रोक्साना ने,भ्राता कह धागा बाँध दिया, तब सिकंदर को परास्त कर भी,पुरुश्रेष्ठ ने जीवनदान दिया। भीषण शत्रुता के मध्य भी जो, प्रेम जगा दे अनुपम, ऐसा मनभावन ये रक्षाबन्धन..।। read full in the caption.... है कथा अनोखी करुणामयी माँ संतोषी के प्रकटोत्सव की, ये बात है श्री गणेश और माँ मनसा के राखी उत्सव की, देख भाई-बहन का प्रेम ,शुभ-लाभ का मन भी ललचाया, तब कृपा हुई श्री गणेश की और संतोषी को भगिनी पाया। खिला जगत संसार मे तब, संतोष क्षमा का उपवन, ऐसा मनभावन ये रक्षाबंधन..।।