अजीब सा कश्मकस है उसकी, बिछड़ना वह चाहती नहीं और ज्यादा देर वह रुक नहीं सकती ! एक हवा के झोंके के भरोसे बाक़ी के जिंदगी टीकी है उसकी !! पतझड़ के वो आखरी पत्ता ख्वाब उसकी बाहर सा है ! यहाँ बिखरे हर पत्ते की कहानी कूछ अलग सा है !! बिनतें करते है वो इन राह गुजरों से, ना रौंदों हमें पैरों मे ! पिछले ऋतु मे तुम ही तो बैठे थे, हमारे ही छाओं मैं !! युहीं नहीं अलग हो जाते पत्ते अपनी शाख़ों से, कड़ी धूप मे झूलसाना पड़ता है, ओस्सों के बूंद के बोझ भी उठाना पड़ता है ! बारिश से लड़ना पड़ता है, हवाओं का तेज रुख भी सहना पड़ता है !! ये पतझड़ भी हिस्सा है जिंदगी के मौसम का ! फर्क सिर्फ इतना है, कुदरत मे पत्ते सुखते है , और हक़ीकत मे रिश्ते !! खैर यह परिंदे सुक्रगुजार है पतझड़ के भी ! वरना तिनका कहाँ से लाते जो सदा बाहर रहती ©Puspanjali #Pattiyan #Nozoto #motavitonal #patjhad #kahani