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बचपन की कुछ यादें हैं,जो आज भी मिटती नहीं , कुछ खट

बचपन की कुछ यादें हैं,जो आज भी मिटती नहीं ,
कुछ खट्ठी सी ,कुछ मीठी जो दिल से मिटती नहीं ।
न जल्दी उठने की फिकर थी और न सोने की खबर,
अब तो नींद की गोली से भी वो नींद मिलती नहीं।

पिता का दफ्तर जाना ,लौटते वक्त कुछ मीठा लाना,
माँ को थमाकर थैला, पापा का फिर मुझे उठाना।
माँ के साथ दादी का आना व पापा को गले लगाना,
दिन भर की सारी खबर वो दादी माँ का सुनाना।

मेरा खेल कूद करना,सबके संग बाहर निकलना,
बच्चों संग झगड़ना फिर माँ की चोटी खींचना।
वो एक एक करके सारी पोल माँ जब खोलती,
मुस्करा देते तब पापा ,दादी माँ न कुछ बोलती।

वो एक गोद से दूसरी गोद मे यूं ही मटकना,
एक बिस्तर पर लेटकर दूसरे पर यूं निकलना।
माँ को डराने के लिए दरवाजे में छिप जाना,
वो नाक पकड़कर फिर सांसों को रोके जाना।

बचपन मे फिर आज जाने का मन कर रहा है,
चलकर थक गया ,ठहर जाने का मन कर रहा है।
शहर की भीड़ छोड़ अपने गाँव चला तो जाऊँ ,
उम्र से ज्यादा जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ रहा है।

©कच्ची कलम -"राख"
  " बचपन "

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