पैग़ाम मैं अपनी शायरी से तुझ तक,पैगाम भेजा करता हु। मैं रोना और मुस्कुराना दोनों साथ किया करता हू। जब से गई है ओ मेरे शहर से हाल मेरा प्यासे कुआँ सा हो गया है जो मिलकर बनाये थे चाँद पे घर अब ओ घर घर नहीं ,श्मशान सा हो गया है जब भी कभी सोफ़े पे बैठे ,ये बात सोचा करता हूं हाँ! मैं रोना और मुस्कुराना दोनों साथ किया करता हूं जब से देखा है कॉलेज में तुझे हाले दिल गवाए बैठा हूँ तेरे नाम के तकिये सीने से लगाये बैठा हूँ। जब-जब सर्द राते तड़पती है। मुझे तेरे यादों का कम्बल ओढ़ा करता हूँ हाँ! मैं रोना और मुस्कुराना दोनों साथ किया करता हु ©Kaushal Kaushik पैग़ाम मैं अपनी शायरी से तुझ तक,पैगाम भेजा करता हु। मैं रोना और मुस्कुराना दोनों साथ किया करता हू। जब से गई है ओ मेरे शहर से हाल मेरा प्यासे कुआँ सा हो गया है जो मिलकर बनाये थे चाँद पे घर अब ओ घर घर नहीं ,श्मशान सा हो गया है