किसी ने दूर का समझा, किसी ने रिश्तों में मुझे समझा, किसी ने मगरुर सा समझा, किसी ने फरिश्तों में मुझे समझा। सुना है जल्द बाज़ी, को आता नहीं कायदा समझने का, शायद तभी दुनियां ने, धीरे धीरे, किश्तों किश्तों में मुझे समझा।। उन्होंने आशिकी को मेरी, पागलपन की तरह समझा, मैंने दिल्लगी को मेरी, दिवानेपन की तरह समझा। अपनी आवारगी की धुन में, चाहा था बहा ले जाऊं कहीं दूर उन्हें, पर उन्होंने मौसिकी को मेरी, बहकावे पन की तरह समझा।। किसी ने कुछ ना मुझे समझा, किसी ने अपने मायनों में मुझे समझा, किसी ने बेवफा समझा, किसी ने अपने दिवानों में मुझे समझा। जब ढूंढ रहा था मैं वो शख्स, जो मुझको, मुझे समझ, समझे, तब जिसने खूब मुझे समझा, वो बस मेरे आईनों ने मुझे समझा।। ं जा हर एक मुमकिन दरों पे, लगा हज़ारों गश्तों में, मुझे समझा, गिन गिन कर अपनों के घरों में, आज़मा हर रिश्तों में, मुझे समझा।। अब कैसी इल्तज़ा, और किस से क्या करूं मैं शिकवा, जब अपने ही अक्स और नज़रों ने, किश्तों किश्तों में मुझे समझा।। ©Arc Kay #Shaayavita #samjha #समझा #noone #noonecares #nooneunderstand #noonelove #realityofpeople #clouds