ये कम क्या इंतिहां है या रब इस इश्क़ की ख़ुद रूठकरके भी हम उनको मनाया किए आँखों के जज़्ब मंज़र थे जब पिघल रहे दिलशाद तबस्सुम लब पे सजाया किए घड़ी दो घड़ी वो सबर ना रख सकें हम एक उमर का इंतज़ार हर घड़ी थे जी रहे हम एक सदा पे गोया उनसे मुख़ातिब थे खुद जब भी वो आएँ पेशगी जाना मुक़र्रर किए कोई हमें बता दे ये फलसफ़ा ज़हीन साँसों के बिना कोई धड़कन तो क्या जिए #longingsouls