ये जो सदियों से चला आ रहा हो सकता है तुम्हें भा रहा पर अब सुबह का इंतजार नहीं अंधेरे में मशाल जला रहा नव भारत "सम्मान-समानता"चिल्ला रहा शब्द नाजायज़ हैं तुम्हारे डरे हुओं को "हिजड़ों की फौज" कहते हो जोयिता मोंडल,शबनम,मनाबी बंदोपाध्याय, जिया दास,प्रिथिका यशीनी,सत्यश्री शर्मिला इस फौज ने ज़माना बदला तुम शब्दावली बदलो गए वो लोग थे अन्याय सहते जो "चूड़ियां पहन लो" कमजोरी है दर्शाता? तुम्हें जन्म दिया जिसने चूड़ियां पहनती वो माता जिस "मर्द को दर्द नही होता" ना वो भी ये दर्द सहन ना कर पाता साहस होता अगर उसमें चिता संग जलकर खुद दिखाता फिर जो भी कहलाना है कहलाता ये सदियों से चला आ रहा नतीजा लिखने वाला खुद ही प्रथम आ रहा ये हो सकता है तुम्हे भा रहा पर अब सुबह का इंतजार नहीं अंधेरे में मशाल जला रहा नव भारत "सम्मान-समानता" चिल्ला रहा नेतृत्व तो आगे से करना होगा परोसने से पहले खुद चखना होगा ये रात अंधेरी है संग हमारे आपको भी जगना होगा।।। - अभिमन्यु "कमलेश" राणा "सम्मान-समानता" #new one..आप सभी के लिए ये जो सदियों से चला आ रहा हो सकता है तुम्हें भा रहा पर अब सुबह का इंतजार नहीं अंधेरे में मशाल जला रहा