अजीब है समझने का ये फेर फिर से सब कुछ अधूरा तो यकीन कैसा हो कागजों पे लिख दो की इश्क़ तुमसे है जब यक़ीन ना हो तो इश्क़ कैसा हो ये नज़रिया अलग फिर बातें अलग फिर शब्दों में बेचैन इल्ज़ाम है ये तजुर्बा भी सबका अलग फेर में है दिखाता अधूरा तो यकीन कैसा हो ZinDagi-e-Sagar www.zindagiesagar.com #ThroughWriting #Poetry अजीब है समझने का ये फेर फिर से सब कुछ अधूरा तो यकीन कैसा हो कागजों पे लिख दो की इश्क़ तुमसे है जब यक़ीन ना हो तो इश्क़ कैसा हो ये नज़रिया अलग फिर बातें अलग